सोमवार, 22 फ़रवरी 2010

धर्म के नाम पर अत्याचार


२००९ 
2009 में धर्म का नए तरीके से दोहन किया गया एक और जहाँ उसे बाजारवाद के चलते बेचा गया, वहीं उसके माध्यम से आतंक और धर्मांतरण के नए-नए रूप विकसित किए गए। राजनीतिज्ञ, कट्टरपंथी और तथाकथित धार्मिक लोग अच्छे शब्दों में गंदा खेल खेलते रहे। अब राजनीति और आतंक का धर्म से गहरा ताल्लुक हो चला है।

यह कहना कि मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना, अब हास्यास्पद ही लगता है। विभिन्नता में भी एकता है यह नारा भी अब चुभने लगा है। भारत में कोई भी सरकार रही हो, उसने भारत की समस्याओं के हल पर गंभीरता से विचार और कार्यवाही कभी नहीं की। गैर-जिम्मेदार राजनीति के चलते हर वर्ष सम्याएँ बढ़ती गई।

धर्म को लेकर कट्टरता तो 2008 में ज्यादा देखने को मिली, लेकिन 2009 में धार्मिक कट्टरता का नया रूप देखने को मिला। पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में जहाँ हिंदू, बौद्ध, ईसाई और सिख लड़कियों से जबरन विवाह करने के मामले प्रकाश में आए, वहीं भारतीय राज्य केरल के 'लव जेहाद' की गूंज भारतीय संसद में भी सुनाई दी। इस्लामिक कट्टरता का सिर्फ यही भयानक रूप देखने को नहीं मिला, खुद मुसलमानों पर भी पाकिस्तान और बांग्लादेश में धर्म के नाम पर अत्याचार किए गए।

पंजाब में डेरा सच्चा सौदा का मामला अभी ठंडा नहीं पड़ा है। राख के नीचे आग अभी भी सुलग रही है, ऐसे में 7 दिसंबर 2009 में दिव्यज्योति संगठन के आशुतोष महाराज के सत्संग को लेकर लुधियाना को सिख कट्टरपंथियों की तलवारों ने लहुलुहान कर दिया। सिखों का आरोप है कि आशुतोष महाराज सिख गुरुओं के खिलाफ गलत प्रचार कर रहे हैं, जबकि कुछ लोगों का कहना है कि वे रामायण और गुरुग्रंथ साहिब की समानता की बात करते हैं। लुधियाना की हिंसा के खिलाफ दमदमी टक्साल और संत समाज ने भी पंजाब बंद का ऐलान किया था।

सिख समाज भी आपस में लड़-झगड़ रहे हैं। शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एसजीपीसी) को हरियाणा की सरकार और सिखों ने कहा है कि हमें अब हरियाणा की अलग शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी चाहिए। सितंबर में हरियाणा के लिए अलग एसजीपीसी की माँग कर रहे सिख नेताओं ने जब कुरुक्षेत्र के प्रतिष्ठित छठी पातशाही गुरुद्वारा की जिम्मेदारी संभाल ली तो इस पर शीर्ष निकाय एसजीपीसी ने इसका कड़ा विरोध किया। बस इसी बात को लेकर पंजाब में हिंसक झड़पे होती रही। यह मामला चल ही रहा था कि राजस्थान के सिखों ने गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के अधिन रहना अस्वीकार कर दिया है।

एक दूसरे मामले की बात करें मालेगाँव विस्फोट का मामला अभी ठंडा नहीं पड़ा है कि अक्टूबर माह में दीपावली उत्सव की पूर्व संध्या पर गोवा के मडगाँव शहर में हुए विस्फोट का आरोप हिंदू दक्षिण पंथी संगठन सनातन संस्था पर मड़ा गया। सनातन संस्था ने इस विस्फोट की घटना से खुद को अलग करते हुए इसे अपने खिलाफ साजिश बताया, लेकिन पुलिस का कहना है कि सनातन संस्था की गतिविधियों के केंद्र रामनाथी गाँव स्थित आश्रम से कुछ आपत्तिजनक सामग्री मिली है।

अब हम बात करते हैं इस्लामिक कट्टरता की, मई माह में तालिबानी आतंकवादियों के खिलाफ जारी आक्रामक अभियान के कारण अफगानिस्तान और स्वात घाटी से बेघर हुए हिंदू और सिख परिवार पाकिस्तान के पंजाब के सरकारी शिविरों में ठहरे थे, लेकिन अब वे कहाँ हैं ये किसी को पता नहीं। एक प्रतिनिधि मंडल अनुसार उक्त शिविरों में लगभग 3100 प्रवासी परिवार थे, जिनमें से 468 सिख परिवार थे।

पाकिस्तान और बांग्लादेश में कई वर्षों से जारी इस्लामिक हिंसा और अत्याचार के चलते लाखों हिंदुओं ने पाकिस्तान छोड़कर भारत में शरण ले रखी है जिन्हें भारतीय नागरिकता देने का मुद्दा इस साल भी अधर में अटका रहा, लेकिन उन हिंदुओं का क्या,जिन्होंने इस्लाम के डर से 'कबूल है' कह दिया।

पाकिस्तान और बांग्लादेश के कई ग्रामीण और आदिवासी इलाकों में इस वर्ष से एक नए तरह का ‍जिहाद चल रहा है, जो हिंदू बहुल इलाके हैं, उनकी स्त्री और भूमि को हड़पा जा रहा है। मानवाधिकार संगठन इस मामले पर चुप है। चुप तो वहाँ की सरकार भी है और भारत सरकार तो इस मामले में धृतराष्ट्र की भूमिका में ही नजर आती है।

बांग्लादेश में वर्ष 2001 के चुनाव के बाद हुई हिंसा के कारण आज भी वहाँ के बचे हुए हिंदू, बौद्ध और ईसाई समाज के नागरिकों में दहशत का माहौल है। उक्त चुनाव के बाद बांग्लादेश में हिंदू, बौद्ध, ईसाई सब दूसरे दर्जे के नागरिक हो गए हैं। हिंदुओं से भेदभाव और उनका दमन जारी है, जबकि भारत के पूर्वोत्तर में बांग्लादेश से आकर बस गए मुसलमानों ने वहाँ के सामाजिक ताने-बाने को तोड़ दिया है। उन्होंने पूरे वर्ष भर छुटपुट हिंसा को अंजाम देकर वहाँ के स्थानीय नागरिकों का जीना दुभर कर रखा है।

असम में सक्रिय 38 गुटों में से करीब 17 गुट बांग्लादेशी मुसलमानों के हैं। घोषित तौर पर इनकी कमान भले ही किसी के भी हाथ में हो, लेकिन उनमें अहम भूमिका बांग्लादेशी मुसलमानों की ही है। ये असम के कई इलाकों में जबरन वसूली करते हैं। इन्हें हरकत उल जिहादी इस्लामी (हूजी) का पूरा समर्थन है। इन आतंकवादी संगठनों ने पूरे राज्य में जाल फैला लिया है। हर जगह उनके 'स्लीपर सेल' मौजूद हैं। 2009 में पूर्वोत्तर में जितने भी विस्फोट हुए उन सभी में 'हूजी' की भूमिका से इनकार नहीं किया जा सकता।

2008 की हिंसा में सुरक्षाकर्मी सहित 1415 लोग मारे गए थे। पूर्वोत्तर के राज्यों में असम, मेघालय, त्रिपुरा, अरुणाचल प्रदेश, नगालैंड, मिजोरम एवं मणिपुर शामिल हैं। 2009 के आँकड़े अभी आना बाकी है। असम में अभी अक्टूबर में ही एक बम धमाके में छह लोगों की मौत हो गई थी। फिर नवंबर में असम के नलबाड़ी में हुए बम धमाकों में सात लोग मारे गए। इस तरह पूरे पूर्वोत्तर राज्य में हर मह छोटे और बड़े बम धमाके होते रहे हैं।

स्टोन कैंसर : देश के हजारों साल पुराने मंदिरों और मठों को जहाँ एक ओर कट्टरपंथ के चलते क्षतिग्रस्त कर दिया गया है, वहीं कोणार्क के सूर्य मंदिर, पुराने स्मारक, अशोक का स्तंभ, मंडोर की समाधियाँ, बेंगु का माताजी का मंदिर, खजराओं के मंदिर आदि सभी सीलन और खुरचन का शिकार हो गए है। इसी क्षरण के चलते उन्हें स्टोन कैंसर की बीमारी से ग्रस्त माना जाने लगा है। उक्त धार्मिक पुरा संपदाओं के संबंध में 2009 में पुरात्व विभाग की नींद खुली तो अब इनकी देखरेख की योजना बना रही है।

बाबा और गुरु : जहाँ एक ओर सुदर्शन क्रिया को करने के लिए नए नेटवर्क के चलते उनकी ग्रहक संख्या में इजाफा हुआ है, वहीं योग के प्रति बढ़ती रुचि का परिणाम यह हुआ कि बाबा रामदेव सहित अन्य नवागत योग-गुरुओं की चल पड़ी है। दूसरी और इस वर्ष फिर जोर-शोर के साथ तरुण सागर जी कड़वे प्रवचन कहते हुए देखे गए।

जून में श्रीश्री रविशंकर को स्जेंट इस्ज्वान विश्वविद्‍यालय हंगरी ने अपने सर्वोच्च सम्मान 'प्रोफेसर हॉनोरिस कॉजा' (मानद प्रोफेसर) से सम्मानित किया। रविशंकरजी विश्वविद्‍यालय द्वारा आयोजित 10वें वार्षिक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन के मुख्‍य वक्ता थे। इस अवसर पर विश्वविद्‍यालय के उप-डाइरेक्टर प्रो. डॉ. लैस्जलो हॉरनॉक ने उन्हें इस सर्वोच्च सम्मान से नवाजा।
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सोमवार, 15 फ़रवरी 2010

धर्म और मोक्ष धर्म

धर्म और मोक्ष धर्म उस बहुदलीय पुष्प की तरह है, जो अर्थ और काम रूपी पंखुडि़यों को सुनियोजित करके मोक्ष-सौरभ बिखेरता है। धर्म इहलोक का नियमन करके परलोक के साथ मन को जोड़ता है। प्रवृत्तिपरक और निवृत्तिपरक विचारों का एक समन्वित प्रयास है धर्म। भारतीय चिंतन परंपरा में धर्म, अर्थ और काम को त्रिवर्ग की संज्ञा दी गई है। त्रिवर्ग इहलोक का पुरुषार्थ है। मनुष्य में जीवन जीने की कला यहीं से आती है। हमारे यहां धर्म को ज्ञान का पर्याय कहा गया है। इस दृष्टि से धर्म मनुष्य का विशिष्ट गुण है। महाभारत की स्पष्ट घोषणा है कि बुद्धिमान लोग त्रिवर्ग को पाने की चेष्टा करते हैं। यदि उनमें से एक ही सुलभ हो तो वे धर्म को ही चुनते हैं, क्योंकि धर्म के बिना अर्थ और काम कतई पालनीय नहीं है: धर्मादर्थश्च कामश्च स किमर्थ न सेव्यते। भारतीय आचारमीमांसा की मान्यता है कि धर्म जीवन का प्रस्थान बिंदु है और मोक्ष गंतव्य बिंदु। सर्वप्रथम शांत वातावरण में सुधी गुरु की कृपा-छाया के तले धर्मशास्त्र का सजग अध्ययन होना चाहिए। धार्मिक मूल्यों को आत्मसात् करने के उपरांत गृहस्थाश्रम में प्रवेश की अनुमति होनी चाहिए। जिसे धर्म का बोध नहीं होगा वह कदाचार के सहारे विपुल धन का संग्रह करेगा और तुच्छ कामनाओं की तृप्ति में धन का अपव्यय करेगा। हमारा धर्मशास्त्र धर्म के प्रखर प्रकाश में धनार्जन की अनुमति देता है और लोकसंग्रह के भाव से जीवन में धन के सदुपयोग की शिक्षा देता है। धर्म उस फिटकरी के सदृश है,जो भोगवाद में निहित वासना को साफ कर देता है और क‌र्त्तव्य कर्म में मनुष्य को नियोजित करता है। इसी तरह वैराग्यवाद में अकर्मता से उसे पृथक कर निष्कामता की ओर प्रवृत्त करता है। यही कर्म में अकर्म और अकर्म में कर्म देखने की कला है, जिसे भगवद्गीता में निष्काम कर्मयोग कहा गया है। भोगवाद का कर्म और वैराग्यवाद की निष्कामता के योग से निष्काम कर्म की धारणा विकसित होती है, जो साधक को मोक्ष की यात्रा करा देती है। संसार मोक्ष के मार्ग में बाधक न होकर साधक है। केवल धर्म के स्निग्ध प्रकाश में संसार के साथ जीवन जीने की कला विकसित कर ली जाए। अनासक्त भाव में आते ही साधक संसार के झंझावात में बुझे हुए दीपक की तरह शांत खड़ा रहता है। यही जीवन्मुक्ति है-निर्वाण है।

डा.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava)



डा.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) ने कहा…
गूगल ने आपके पत्रा को वयस्क बता कर आगंतुकों को सीधे आने से रोक रखा है क्या बात है आप गूगल से इस बारे में पत्रव्यवहार करिए कि क्या धार्मिक बातें लिखना गलत है? सादर 
प्रभु की यही इछा थी |उन का कथन हे कि तुझे यह गीता रूप रहस्य कभी भी तप रहित ,भगती रहित और न सुनने कि इछा वालों तथा मुझ में दोष दृष्टि रखने वालों से तो इसे कभी भी नही कहना चाहिए (देखें अध्याये १८ का ६७ वां श्लोक ) अब आप ही बताएं मुझे क्या करना चाहिए था ?मेने अपने विवेक से ऐसा किया कि प्रभु आप कि इछा से जो क्लिक करे गा वही पडे गा |आप के पास कोई और विकल्प हो तो सुझायं -----धन्यवाद ------गीता 

नया साल शानदार होगा.

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मलेशिया की एक अदालत ने सरकार के आदेश को उलटते हुए फ़ैसला सुनाया है कि ईसाई प्रकाशनों में ईश्वर के लिए अल्लाह शब्द का प्रयोग किया जा सकता है.
सरकार की दलील थी कि ग़ैर मुसलमान यदि अल्लाह शब्द का प्रयोग करेंगे तो देश में अशांति फैल सकती है.
जब  कि अल्लाह शब्द सिर्फ़ इस्लाम से ही संबद्ध नहीं है.खुदा आल्हा ईश्वर सभी का साझा और आखरी पड़ाव है.
अदालत केएक  फ़ैसले के बाद अब पूरे मलेशिया में ईसाई प्रकाशनों में ईश्वर के लिए अल्लाह शब्द का प्रयोग संभव हो सकेगा.
मामले की सुनवाई के दौरान कैथोलिक ईसाइयों के अख़बार हेराल्ड ने दलील दी थी कि चर्च में अल्लाह शब्द का प्रयोग दशकों से हो रहा है. हेराल्ड ने सरकार के आदेश के ख़िलाफ़ 2007 में अदालत में अपील दायर की थी.
संदेह
कई मुस्लिम संगठनों ने अल्लाह शब्द के प्रयोग के बारे में कैथोलिक चर्च के आग्रह पर संदेह व्यक्त किया था.
इनका मानना है कि अल्लाह शब्द के प्रयोग के आग्रह से चर्च की मुसलमानों को धर्म परिवर्तन कर ईसाई बनाने की मंशा साफ़ हो जाती है.
उल्लेखनीय है कि मलेशिया में धर्म परिवर्तन अवैध है.ताज़ा विवाद से मलेशिया में समुदायों के बीच तनाव बढ़ सकता है.
हेराल्ड अख़बार ने उच्च न्यायालय के फ़ैसले का स्वागत करते हुए कहा है कि मलेशिया के साढ़े आठ लाख कैथोलिकों के लिए नया साल शानदार होगा.
मलेशिया की आधी से ज़्यादा आबादी मलय मुसलमानों की है. बाक़ी आबादी में चीनी और भारतीय मूल के लोगों की बहुलता है जो कि मुख्यत: ईसाई, बौद्ध और हिंदू धर्मों को मानने वाले हैं.

मंगलवार, 9 फ़रवरी 2010

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जन्म लिया भारत में भारत ही है घर मेरा भारत का खाना भारत का पानी पीना भारत में जीना भारत में मरजाना भारत भूमि देवताओं की उन्ही का गुण-गान करना जो हैं पाखंडी दम्भी उन का त्रिस्कार करना सनातन धर्म का प्रचार हिन्दू,मुस्लिम,सिख,इसाई, इन चारों को मेरा प्रणाम जो हें विरोधी इनके उनको घुसे-लात